loader
मराठी

साढ़ेसाती मार्गदर्शन

  • Home    >
  • साढ़ेसाती मार्गदर्शन

साढ़ेसाती मार्गदर्शन

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शनि की साढ़ेसाती और महादशा काफी कष्टकारी होती है। शनि की साढ़ेसाती होने पर व्यक्ति को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। बनते हुए काम बिगड़ने लगते हैं। नौकरी और व्यापार में परेशानियों का सामना करना पड़ता है और बीमारियां होने लगती हैं। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में एक बार साढ़ेसाती जरूर आती है। वैदिक ज्योतिषशास्त्र में शनिदेव को कर्मफलदाता कहा गया है।

वह व्यक्तियों को उनके कर्मो के हिसाब से अच्छा और बुरा दोनों तरह के फल प्रदान करते हैं। शनिदेव न सिर्फ प्रताड़ित करते हैं बल्कि प्रसन्न होने पर और कुंडली में शुभ भाव में बैठने पर रंक को राजा भी बना देते हैं।

कई स्थितियों में किसी जातक के ऊपर शनि दोष चढ़ता है। शनि जब मेष राशि होता है तो उसे नीच का माना जाता है। जब शनि शत्रु राशि में जाता है तब भी शनि दोष पैदा हो जाता है। ऐसे में जातक को शनि परेशान करते हैं। शनि सूर्य और चंद्रमा के साथ युति बनाने पर शनि दोष पैदा होता है।

ज्योतिष गणना के अनुसार चंद्र राशि से जब शनि 12वें, पहले और द्वितीय भाव में रहता तो उस अवधि को शनि की साढ़ेसाती कहा जाता है। 

शनि न्याय के देवता हैं, इसलिए इन्हें दण्डाधिकारी की पदवी प्राप्त है। ऐसे में जो असहायों और गरीबों को परेशान करता है उस पर शनि की टेढ़ी नजर होती है।